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मैंने रीति निभाई / प्रेमलता त्रिपाठी
Kavita Kosh से
लिख लिख भेजा पाती तुमको, मैंने रीति निभाई।
सच माना अब मैंने प्रियतम, होती प्रीति पराई।
राग छेड़ती तन-मन जारे, नैना यह पथराये।
अँसुवन की माला मैं गूँथूँ, उर में अगन लगाई।
कोरा कागज था मन मेरा, लिख कर नाम तिहारा,
निंदिया वैरन लागे अबतो, जागत रहत सताई।
पूछ रही माथे की बिंदिया, कंगना शोर मचावे,
बीच भँवर में छोड़ गये क्यों, मन में आस जगाई।
विरह विकल मँह इत उत डोले, मन पंछी घबराये,
दीरघ सांस भरे मति भोरी, कैसी प्रीति बनाई।
रात लगे अब स्याह साँवरे, टिम-टिम जरे वियोगन,
जब लगि आवे प्रेम सँदेसा, रार करे अँगनाई।