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मैंने लिक्खे नहीं ये पल ख़ुद से / संकल्प शर्मा
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मैंने लिक्खे नहीं ये पल ख़ुद से,
हो गई बस यूँ ही ग़ज़ल ख़ुद से।
तुझको दिल से निकालने के लिए,
लड़ता रहता हूँ आजकल ख़ुद से।
तेरी यादें तो बस बहाने हैं,
मेरा झगडा है दर-असल ख़ुद से।
इस से पहले के साजिशें होतीं,
ढह गया सपनों का महल ख़ुद से।
जब से वो हमसफ़र हुए हैं मेरे,
मंजिलें हो गयीं सहल ख़ुद से।