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मैंने लिखा मुनव्वर को एक ख़त, कि / नाज़िम हिक़मत / सुरेश सलिल

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दरख़्त अब भी सही सलामत हैं,
पुरानी बेंचें गल-सड़कर बेदख़ल हो गईं,
बोरिस पार्क अब फ़्रीडम पार्क है ।
चेस्टनट के दरख़्त के नीचे मैंने फ़क़त तुम्हारा ख़याल किया
अकेले तुम्हारा — यानी मेमेत का,
फ़क़त तुम्हारा और मेमेत का, यानी अपने वतन का ...

१९५७

अँग्रेज़ी से अनुवाद : सुरेश सलिल