भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मैंने लोहे का चाँद निगला है / जू लिझी / सिमरन
Kavita Kosh से
मैंने लोहे का चाँद निगला है
वो उसको कील कहते हैं
मैंने इस औद्योगिक कचरे को,
बेरोज़गारी के दस्तावेज़ों को
निगला है,
मशीनों पर झुका युवा जीवन
अपने समय से
पहले ही दम तोड़ देता है,
मैंने भीड़, शोर-शराबे और बेबसी को
निगला है।
मैं निगल चुका हूँ
पैदल चलने वाले पुल,
ज़ंग लगी जि़न्दगी,
अब और नहीं निगल सकता
जो भी मैं निगल चुका हूँ
वो अब मेरे गले से निकल
मेरे पूर्वजों की धरती पर फैल रहा है
एक अपमानजनक कविता के रूप में।
अँग्रेज़ी से अनुवाद : सिमरन