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मैंने वसन्त को / शील
Kavita Kosh से
मैंने वसन्त को मधु-रस दे
सिखलाया मधुपों को गाना
सिखलाया कलियों को मैंने
सौरभ बिखराना मुस्काना
मेरे जीवन की दुनिया में
संघर्ष विजय है हार नहीं
उठते भावों अरमानों का
कुछ भी है पारावार नहीं
मेरे मनमौजी जीवन में
है क्रान्ति, शान्ति का ताप नहीं
मेरी इस अडिग तपस्या में
कुछ पुण्य नहीं, कुछ पाप नहीं।