मैंने वो बातें बचा रखीं हैं / प्रांजलि अवस्थी
कुछ बातें
जो होकर भी हो नहीं पातीं
या मैं कर नहीं पाती
या जो शब्दों द्वारा चयनित होने तक
विचारों की श्रंखला के पीछे खड़ीं कतार के आखिरी लाभार्थी की तरह
जमीन पर पैर के पीले पड़ते नाखूनों से
संशय की लकीरें खींचतीं रहतीं हैं
और फिर तुम्हें देखकर
वो इन्तजार की लम्बी समयावधि को साधना समझ कर
होंठों से छिपते हुये आँखों में बैंठ जातीं हैं
मैंने वह सारी बातें शब्दों से बचाते हुये
कविताओं को बता रखी हैं
शायद कभी तुम कविताओं में प्रेम का मतलब
ढूँढ़ने निकलो
तो सोचो कि
क्यों मेरी कविताओं के अंदर
प्रेम संसर्ग में शाब्दिक स्पर्श मौन रहता है?
उस अविस्मरणीय क्षण के लिए
चुनिन्दा शब्दों के झरोखें में मैंने
तुम्हारे लिए जैसे एक ताज़ी हवा बचा रखी है
मैंने वह बातें
जो होकर भी हो नहीं पातीं
कुछ इस तरह बचा रखीं हैं