भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मैंने सातों सुर साधे हैं / गुलाब खंडेलवाल
Kavita Kosh से
मैंने सातों सुर साधे हैं
फिर भी बिना तुम्हारे, मेरे गीत अभी आधे हैं
राग गले तक रह जाता है
जग का हृदय न छू पाता है
जुड़ न सका तुमसे नाता है
यों तो मैंने कसकर मन के तार-तार बाँधे हैं
मेरे शब्द-भ्रमर गुमसुम-से
मिलकर भी हर कली-कुसुम से
मिले नहीं उपवन में तुमसे
इतना लिख-लिखकर भी लगता, पृष्ठ सभी सादे हैं
मैंने सातों सुर साधे हैं
फिर भी बिना तुम्हारे, मेरे गीत अभी आधे हैं