भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मैंने सारे जगत की स्याही घोंट ली है / अमृता भारती
Kavita Kosh से
मैंने सारे जगत की स्याही घोंट ली है
मैंने कालवृक्ष की टहनी तोड़ ली है
उसका सद्यजात माथा नीचे झुकता है
मेरी अनामिका का सर्पदंश सहता है