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मैं-तुम में / शुभम श्रीवास्तव ओम

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तुम मुझे प्रस्तुत करो, मैं तुम्हें प्रस्तुत कर रहा
इसी ‘मैं-तुम” में हमारे दौर का
सच मर रहा ।

मैं तुम्हारे लिए लाऊँ
शब्द कुछ कहवाघरों से गर्म ताज़ा छौंक वाले
और लाओ तुम पुराने शिलालेखों, सभ्यताओं से टँके बौद्धिक निवाले
क्या अभी तक की पड़ी है, क्या अभी का
डर रहा ।

हमें अपने मञ्च-तम्बू
दरी जाजिम पंचलाइट साथ मिलकर हैं लगाने
बड़े मठ के गर्भगृह में बैठकी होगी, लगेंगे कहकहे आओ फलाने !
कौन आया पैर छूने, कौन छूकर
तर रहा ।