मैं-मैं और मैं- यानी एक पत्रकार / वर्तिका नन्दा
कसाईगिरी
तुम और हम एक ही काम करते हैं
तुम सामान की हाँक लगाते हो
हम ख़बर की ।
तुम पुरानी बासी सब्ज़ी को नया बताकर
रूपए वसूलते हो
हम बेकार को 'खास' बताकर टी०आर०पी० बटोरते हैं
लेकिन तुममें और हममें कुछ फ़र्क भी है।
तुम्हारी रेहड़ी से खरीदी बासी सब्ज़ी
कुकर पर चढ़कर जब बाहर आती है
तो किसी की ज़िंदगी में बड़ा तूफ़ान नहीं आता।
तुम जब बाज़ार में चलते हो
तो ख़ुद को अदना-सा दुकानदार समझते हो
तुम सोचते हो कि
रेहड़ी हो या हट्टी
तुम हो जनता ही
बस तुम्हारे पास एक दुकानदारी है
और औरों के पास सामान खऱीदने की कुव्वत।
तुम हमारी तरह फूल कर नहीं चलते
तुम्हें नहीं गुमान कि
तुम्हारी दुकान से ही मनमोहन सिंह या आडवाणी के घर
सब्ज़ी जाती है
लेकिन हमें गुमान है कि
हमारी वजह से ही चलती है
जनसत्ता और राजसत्ता।
हम मानते हैं
हम सबसे अलहदा हैं
खास और विशिष्ट हैं।
पर एक फ़र्क हममें और तुममें ज़रा बड़ा है
तुम कसाई नहीं हो
और हम पेशे के पहले चरण में ही
उतर आए हैं कसाईगिरी पर।