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मैं अकेला हूँ यहाँ मेरे सिवा कोई नहीं / शहजाद अहमद
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					मैं अकेला हूँ यहाँ मेरे सिवा कोई नहीं 
चल रहा हूँ और मेरे नक़्श-ए-पा कोई नहीं 
ज़ेहन के तारीक गोशों से उठी थी इक सदा 
मैं ने पूछा कौन है उस ने कहा कोई नहीं 
देख कर हर एक शय का फै़सला करते हैं लोग 
आँख की पुतली में क्या है देखता कोई नहीं 
किस को पहचानूँ कि हर पहचान मुश्किल हो गई
ख़ुद-नुमा सब लोग हैं और रू-नुमा कोई नहीं 
नक़्श-ए-हैरत बन गई दुनिया सितारों की तरह 
सब की सब आँखें खुली हैं जागता कोई नहीं 
घर में ये मानूस सी ख़ुश-बू कहाँ से आ गई 
इस ख़राबे में अगर आया गया कोई नहीं 
पैकर-ए-गुल आसमानों के लिए बे-ताब है
ख़ाक कहती है कि मुझ सा दूसरा कोई नहीं 
उम्र भर की तल्ख़ियाँ दे कर वो रूख़्सत हो गया 
आज के दिन के सिवा रोज़-ए-जज़ा कोई नहीं
	
	