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मैं अपना वो ही चेहरा ढूढ़ता हूँ / शुभम श्रीवास्तव ओम
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मैं अपना वो ही चेहरा ढूढ़ता हूँ,
कि-खुद को मुस्कुराता ढूढ़ता हूँ।
बहुत भारी अभी माहौल लेकिन-
मैं इक उड़ता परिन्दा ढूढ़ता हूँ।
निशाने पर न रक्खूँगा किसी को,
न शीशा हूँ,न शीशा ढूढ़ता हूँ।
मुझे काफिर कहा जिसने उसी में-
खुदा-भगवान-ईशा ढूढ़ता हूँ।
ग़ज़ब! अब ज़िन्दगी से दूर होकर,
मैं जीने का सलीका ढूढ़ता हूँ।