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मैं अपनी धुन में मस्त रहा / वैभव भारतीय
Kavita Kosh से
क्योंकि तुम्हें जवाब पसन्द है
नियम-क़ायदा पुस्तक वाला
बस अच्छा हो, या फिर घटिया
सब धूसर हो जाये काला।
दुनिया लेकिन कुछ ऐसी है
यहाँ चाहत की परवाह नहीं
वो मेरी हो कि तुम्हारी हो
हो श्वेत या कि फिर काली हो।
यहाँ पहले भी तो गड़बड़ थी
अब भी है कल का क्या कहना
ये क्रमिक-विकासों के हैं नियम
परिवर्तन दुनिया का गहना।
यदि कोई क़ायदा है भी तो
वो हमको तो दिखने से रहा
तुम स्वयं-प्रकृति में अच्छे हो
मैं अपनी धुन में मस्त रहा।