भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मैं अपने आप से डरने लगा था / मोहम्मद अलवी
Kavita Kosh से
मैं अपने आप से डरने लगा था
गली का शोर घर में आ गया था.
परेशाँ था खुला दरवाज़ा घर का
कोई खिड़की पे दस्तक दे रहा था.
उसे मैं शहर भर में ढूँड आया
मेरे कमरे में वो बैठा हुआ था.
वहाँ के लोग भी कितने अजब थे
अजब लोगों में घिर के रह गया था.
बहुत ख़ुश हो रहा था मुझ से मिल के
न जाने आज उस के दिल में क्या था.
उसे मैं ने भी कल देखा था 'अल्वी'
नए कपड़े पहन के जा रहा था.