मैं अपने पथ की हर मुश्किल / महावीर प्रसाद ‘मधुप’
मैं अपने पथ की हर मुश्किल खुद ही आसान बना लूँगा।
मेरे मन पर चिन्ताओं का होता किंचित अधिकार नहीं,
वह मानव क्या संघर्षों से, जिसको जीवन में प्यार नहीं।
कष्टों के कठिन समय में ही होती हिम्मत की जाँच सदा,
काँटों पर बिना चले मिलता मंज़िल का दर्श-दुलार नहीं।
मैं दुखमय आह-कराहों को सुखमय मृदु-गान बना लूँगा।
मैं अपने पथ की हर मुश्किल खुद ही आसान बना लूँगा।
माना एकाकी हूँ, पथ है कंटकमय और प्रकाश नहीं,
मेरे साहस पर भी जग को, होता थोड़ा विश्वास नहीं।
पर त्रास नहीं कुछ भी मेरे उर में मग की बाधाओं का,
विचलित कर सकता मुझे तनिक जगती का कटु उपहास नहीं।
मैं पीड़ा के उच्छ्वासों को मधुमय मुस्कान बना लूँगा।
मैं अपने पथ की हर मुश्किल खुद ही आसान बना लूँगा॥
श्रम से सब कुछ है साध्य, स्वयं मानव निज भाग्य-विधाता है,
अपने कर्मों से ही बनता सुख-दुख का भी निर्माता है।
निष्क्रिय जड़ जीवन को जग में, मिलता है मान महत्व नहीं,
कर्मठ बन कर ही मनुज सदा, आदर्श विजय-पद पाता है॥
मैं जीवन के अभिशापों को, विधि का वरदान बना लूँगा।
मैं अपने पथ की हर मुश्किल खुद ही आसान बना लूँगा॥