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मैं अपने पुराने जीर्ण शरीर से / अज्ञेय
Kavita Kosh से
मैं अपने पुराने जीर्ण शरीर से मुक्त हो गया हूँ।
नया जीवन पाने के उन्माद-मिश्रित आह्लïाद में भी मुझे यह बात नहीं भूलती-नवीन जीवन की प्राप्ति भी उतनी सुखद नहीं है जितना यह ज्ञान कि मेरा पुराना जीवन नष्ट हो गया है। नये जीवन के प्रति मुझे अभी तक मोह नहीं हुआ-अभी तो मुझे इसी अनुभूति से अवकाश नहीं मिला कि मैं मुक्त हूँ-कि मेरा जीवन निर्बाध है।
(कभी जब तुम मेरे निकट आयी थीं-तब ऐसा नहीं था। तब मैं इस नूतनता के भाव में यह भी भूल गया था कि मेरा तुम से स्वतन्त्र अस्तित्व है!)
दिल्ली जेल, 31 अक्टूबर, 1932