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मैं अपने साथ बहुत कुछ लेकर जाऊंगा... / लोकमित्र गौतम

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तुम भले हंसो, मगर मैं कहते हुए गंभीर हूँ
कि मैं अपने साथ बहुत कुछ लेकर जाऊँगा
न सिर्फ जिंदगी के अलबम का एक मास्टर प्रिंट
न सिर्फ उस खंडहर वाली भूलभुलैया का रहस्य
जिसके सुरमई अंधेरों में हम असमय जवान हुए थे.
मैं और भी बहुत कुछ लेकर जाऊँगा
मैं लेकर जाऊंगा वो धुन
जो ताउम्र मेरे कानों में बजती रही
मगर पूरी तरह से कभी समझ नहीं आयी
समझने की कोशिश में हमेशा
कभी राग छूट जाता, कभी लय टूट जाती
मैं इसे किसी से साझा भी नहीं कर सका
सबके पास अपनी अपनी धुनें थीं
और सब मुब्तिला थे उनके अधूरेपन की कसक में
धुंधला था संगीत और अजनबी उसकी लिपि
मैं इसे लिखकर भी नहीं छोड़ सका.
मैं अपने साथ लेकर जाऊंगा वो कई स्वाद
जो पता नहीं अभाव के थे या अपनत्व के
घर छोड़ने या छूट जाने के बाद
मैं हर जगह तलाशता रहा
नामों में, भीड़ में, भूगोल में, इतिहास में
ताकि हुमक कर दुनिया को बता सकता, हां ये बिलकुल वैसे ही हैं
कच्चे ,बाक़ठ, कसैले
मगर ढूंढता ही रहा उम्र भर कहीं नहीं मिला इनके जैसा कोई और स्वाद
अब तो मुझे भी भ्रम है ये स्मृति में बचे हैं या इच्छाओं में
लेकिन मैं इन्हें अपने साथ ले जाऊंगा.
मैं अपने साथ थोडा नहीं बहुत कुछ लेकर जाऊंगा
वो हिम्मतें
जो मेरे सिवा सबके लिए हास्यास्पद थीं
वो तरकीबें
जो खालिस मेरी अपनी थीं
जिन्हें कोई प्रबंधन संस्थान नहीं
जिन्दगी का ऊबड़ खाबड़ सिखाता है
वो मेरी मौलिक कल्पनाएं
जिन तक दुनिया के किसी भी व्यवस्थित ज्ञान के जरिये पहुंचना तय नहीं
सिर्फ मन के बिगडैल घोड़े ही इनका पता जानते हैं.
मैं साथ लेकर जाऊंगा अपने सपनों की तिलस्मी दुनिया
क्योंकि मैं इनका बायोलॉजिकल पासवर्ड हूँ
मेरा तोड़ बड़े से बड़े हैकर के भी पास नहीं
कोई कितना ही दावा कर ले वो मेरे सपनो को जानता है
मेरे सपने बस मेरे हैं अधेड़, अनगढ़ और अधूरे
उनके बारे में तो कोई कुछ सोच भी नहीं सकता
जिनकी अपने ही हाथों मैंने हत्या की है.
तुम शोक मनाना मेरी जान
क्योंकि मेरे जैसा फिर कोई दूसरा नहीं होगा
दूसरा, दूसरा ही होगा
तुम सचमुच मेरे जाने का शोक मनाना
क्योंकि मैं अपने साथ लेकर जाऊंगा एक मुकम्मिल दुनिया
आवाजें, तरंगे, बारिश और आग
मैं अपने साथ लेकर जाऊंगा एक तजुर्बा
जो सीखा नहीं जा सकता
मैं अपने साथ लेकर जाऊंगा आदमी जितनी खाली जगह
 जिसकी भरपाई नहीं हो सकती
मैं अपने साथ लेकर जाऊंगा अपनी आदिम इच्छाएं
जो इतनी ठोस नहीं थीं कि उनकी प्रतिकृतियाँ गढ़ी जा सकतीं
और इतनी नियमबद्ध नहीं कि कोई नैनो टेक्नोलोजी उनकी नकल कर सकती
मैं वो सब अपने साथ लेकर जाऊंगा
जिससे खड़ी ढलान पर नंगी जड़ो वाला कोई पेड़
जी जाता है पैंतालीस वसंत.