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मैं अब सत्य को छिपा नहीं सकता / अज्ञेय

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मैं अब सत्य को छिपा नहीं सकता।
मैं चाहता हूँ, यह विश्वास कर सकूँ कि तुम में व्यथा का अनुभव करने का सामथ्र्य ही नहीं है; क्योंकि मेरा अपना हृदय टूट गया है, और मैं अधिक नहीं सह सकता।
मेरी इच्छा है कि तुम्हें क्रूर और अत्याचारी समझ सकूँ, क्योंकि मेरा उद्धार इसी विश्वास में है कि मैं तुम्हारी बलि हूँ।
हमने- मैं ने और तुम ने- जो भयंकर भूल की है, उस से बचने का इस के अतिरिक्त दूसरा उपाय नहीं है।

19 जुलाई, 1933