भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मैं अवतार नहीं / किरण मिश्रा
Kavita Kosh से
मुझे अवतार नहीं बनना देव
मैं तो कर्म सौन्दर्य
करती हूँ संघटित ।
उसी से मेरा स्वरूप
भिन्न है मनु तुम से
मेरे जीवन में उसी से माधुर्य आता है ।
माधुर्य मुझे देता है
ज्ञानी उद्धव-सी चुप्पी
जो सह लेती है
वाचा का अन्तिम तीर
जो तुम से मुझ तक आता है ।
मनु तुम मुझे माप नहीं सकते
मैं हूँ अनन्त अविनाशी