मैं आपसे कहने को ही था / शमशेर बहादुर सिंह
मैं आपसे कहने को ही था, फिर आया ख़याल एकाएक
कुछ बातें समझना दिल की, होती हैं मोहाल एकाएक
साहिल पे वो लहरों का शोर, लहरों में वो कुछ दूर की गूँज :
कल आपके पहलू में जो था, होता है निढाल एकाएक
जब बादलों में घुल गई थी कुछ चांदनी-सी शाम के बाद
क्यों आया मुझे याद अपना वह माहे-जमाल एकाएक
सीनों में क़्यामत की हूक, आँखों में क़यामत की शाम :
दो हिज्र की उम्रें हो गईं दो पल का विसाल एकाएक
दिल यों ही सुलगता है मेरा, फुँकता है यूँ ही मेरा जिगर
तलछट को अभी रहने दे, सब आग न ढाल एकाएक
जब मौत की राहों में दिल, ज़ोरों से धड़कने लगता
धड़कन को सुलाने लगती उस शोख़ की चाल एकाएक
हाँ, मेरे ही दिल की उम्मीद तू है, मगर ऎसी उम्मीद
फल जाए तो सारा संसार हो जाए निहाल एकाएक
एक उम्र की सरगरदानी लाए वो घड़ी भी 'शमशेर'
बन जाए जवाब आपसे आप आँखों का सवाल एकाएक
रचनाकाल :1955