भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मैं आवाज हूँ / स्मिता तिवारी बलिया

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

रोकोगे मुझे
कितना ....?
और कब तक?
पता है;
मैं कौन हूँ?
हाँ,मैं आवाज हूँ;
कहीं से से भी निकल सकती हूँ,
कहीं से मतलब कहीं से भी...
कभी किसी पीड़ित की चीख से
कभी शोषित लोगों के आक्रोश से
कभी भीड़ से भी
तो कभी खामोशी से भी
कभी अखबार से
कभी लेखक की लेखनी से
कभी कविता के उच्छवास से
कभी प्रलय के हाहाकार से
हाँ तुम रोक न पाओगे
क्योंकि जब तुम चुप भी हो गए न
तब मैं उस चुप्पी में भी गूंजती रहूँगी
क्योंकि मैं आवाज हूँ,
कहीं से भी निकल सकती हूँ...