भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मैं आशिक हूँ बहारों का / शैलेन्द्र

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मैं आशिक हूँ बहारों का, नज़रों का, फिजाओं का, इशारों का
मैं आशिक हूँ बहारों का नज़रों का, फिजाओं का, इशारों का
मैं मस्ताना मुसाफिर हूँ जवां धरती के अनजाने किनारों का
मैं आशिक हूँ बहारों का

सदियों से जग में आता रहा मैं
नए रंग जीवन में गता रहा मैं
नए भेस में नित नए देश मैं

मैं आशिक हूँ बहारों का नज़रों का, फिजाओं का,इशारों का
मैं मस्ताना मुसाफिर हूँ जवां धरती के अनजाने किनारों का
मैं आशिक हूँ बहारों का

कभी मैंने हंस के दीपक जलाए
कभी बन के बादल आंसू बहाए
मेरा रास्ता प्यार का रास्ता

मैं आशिक हूँ बहारों का नज़रों का, फिजाओं का, इशारों का
मैं मस्ताना मुसाफिर हूँ जवां धरती के अनजाने किनारों का
मैं आशिक हूँ बहारों का

चला गर सफ़र को कोई बेसहारा
तो मैं हो लिया संग दिए एक तारा
गाता हुआ दुःख भूलता हुआ

मैं आशिक हूँ बहारों का नज़रों का, फिजाओं का, इशारों का
मैं मस्ताना मुसाफिर हूँ जवां धरती के अनजाने किनारों का
मैं आशिक हूँ बहारों का.