मैं आशिक हूँ बहारों का / शैलेन्द्र
मैं आशिक हूँ बहारों का, नज़रों का, फिजाओं का, इशारों का
मैं आशिक हूँ बहारों का नज़रों का, फिजाओं का, इशारों का
मैं मस्ताना मुसाफिर हूँ जवां धरती के अनजाने किनारों का
मैं आशिक हूँ बहारों का
सदियों से जग में आता रहा मैं
नए रंग जीवन में गता रहा मैं
नए भेस में नित नए देश मैं
मैं आशिक हूँ बहारों का नज़रों का, फिजाओं का,इशारों का
मैं मस्ताना मुसाफिर हूँ जवां धरती के अनजाने किनारों का
मैं आशिक हूँ बहारों का
कभी मैंने हंस के दीपक जलाए
कभी बन के बादल आंसू बहाए
मेरा रास्ता प्यार का रास्ता
मैं आशिक हूँ बहारों का नज़रों का, फिजाओं का, इशारों का
मैं मस्ताना मुसाफिर हूँ जवां धरती के अनजाने किनारों का
मैं आशिक हूँ बहारों का
चला गर सफ़र को कोई बेसहारा
तो मैं हो लिया संग दिए एक तारा
गाता हुआ दुःख भूलता हुआ
मैं आशिक हूँ बहारों का नज़रों का, फिजाओं का, इशारों का
मैं मस्ताना मुसाफिर हूँ जवां धरती के अनजाने किनारों का
मैं आशिक हूँ बहारों का.