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मैं आ रहा हूँ / लीलाधर मंडलोई

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(लंदन से पत्‍नी को अंतिम चिट्ठी)


मैं धूप हूं
हवा हूं
तूफान हूं

मैं वन हूं
तोता हूं
हिंस्‍त्र जंतु हूं

मैं आग हूं
धमनभट्टी हूं
राख हूं

मैं बमवर्षक विमान हूं
लड़ाकू पनडुब्‍बी हूं
मिसाइल हूं

और तुम अनंत तक फैली मेरी धरती हो
जिसमें मेरी हर अच्‍छी-बुरी यात्रा का सुखद अंत निश्चित है

मैं आ रहा हूं.