भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मैं इसी प्रतीक्षा में हूँ / तुलसी पिल्लई
Kavita Kosh से
नदियों से
नदियाँ मिल जाती है
पेड़ो से
लता लिपट जाती है
लेकिन
तुम क्यों हो मुझसे अलग-अलग?
मेरी परछाई बनकर
चलते हो
तुम क्यों मुझसे अलग-अलग?
तुम्हारे साथ
कल्पनाओं के
दरिया में डूबकर
जीवन जी लेती हूँ
लेकिन
वास्तविकता होती है
अलग-अलग
क्या तुम मुझे मिलोगे?
क्या मेरे उपवन में
तुम्हारे प्रेम के पुष्प खिलेंगे?
लेकिन
यह मेरी सोच है
तुम्हारी भी सोच होगी
अलग-अलग
पता नही?
यह सम्बन्ध कैसा है?
तुमने मुझ प्रेमपाश मे
छुप्पा लिया है
लेकिन
मैं हूँ
तुमसे अलग-अलग
इस वियोग का अन्त कब होगा?
क्या मेरे जीवन में?
तुम्हारे प्रेम की बाहार आयेगी
मैं इसी प्रतीक्षा में हूँ ।