भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मैं इसे कैसे कह दूँ है प्यारी गजल / अमरेन्द्र
Kavita Kosh से
मैं इसे कैसे कह दूँ है प्यारी गजल
साफ दिखती है जो अधकपारी गजल
सबके चेहरे उड़े तो उड़े रह गये
मैंने ऐसी कही इक करारी गजल
आज कल भेड़ियों में यही चर्चा है
हो गई है बहुत ही शिकारी गजल
दस की बातें यहाँ दस के आँसू यहाँ
मेरी गजलंे सभी दसदुआरी गजल
कौन शामिल नहीं था मेरे कत्ल में
जाके किससे करे मारामारी गजल
उनको जा कर सँवरना पड़ा है तभी
मैंने जब-जब भी है ये सँवारी गजल
जितनी भी दाद दूँ वह बहुत ही है कम
खूब अमरेन्द्र है ये तुम्हारी गजल।