भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मैं इस दुनिया में नहीं आई थी / मुइसेर येनिया

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

न तो कोई माँ थी
न वह माँ थी
किसी बच्चे की

मैं इस दुनिया में नहीं आई थी

मेरे प्रेमी दूसरों के पति थे
मैं रही
बस एक बटा दो

मैं झुकी शब्दों के ऊपर
ताकि वे देख सकें गरीबी
जो पिघलती है

मुझे एक भी मनुष्य नहीं मिला
हर कोई कुतर रहा है
मेरी पीड़ा

मैं न्यून कर रही हूँ खुद को
मैं नहीं होना चाहती
एक तर्क से अधिक ।