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मैं उद्दीप्त हो जाती हूँ / ज्योति शर्मा
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मैं उद्दीप्त हो जाती हूँ
दयाद्र मनुष्य देख
हो जाती हूँ उद्दीप्त
देखकर सुगठित शरीर सुविकसित दिमाग़
चमकती आँखें
मैं भर जाती हूँ रति की चाह सेए जब कोई
किसी से प्रेम से भीगी बातें कर रहा होता है
उद्दीप्त हो जाती हूँ
जब कोई किसी में डूबा लिख रहा होता है
संदेश नीली रौशनी में
मैं इतनी ख़ूबसूरत ज़िंदगी से भरी
दुनिया को देखकर उद्दीप्त हो जाती हूँ
मेरी सहेली कहती है
उसे प्यार है एक ऐसे आदमी से
जिससे वह कभी नहीं मिली
उद्दीप्त हो जाती हूँ
उस युवा संन्यासी को देखकर
जिसने सबकुछ त्याग दिया अपने जीवन का