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मैं उनकी परछाइयाँ चीह्नता हूँ / नीलोत्पल

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मैं उनकी परछाइयाँ चीह्नता हूँ

मैंने सारी नैतिकताएँ ढोईं, सारे आवरण हटाए
तोड़ी पत्थरों की ख़ामोशी
सारी जड़ों को दी रोशनियाँ
आकाश और नमक को जगह दी भीतर
मैं दरिया लिए चलता रहा

मैं उन सारे नरकों में गिरा
जो आवाज़ों और रोटी के टुकड़े
गंदे कपड़ों और ठसाठस भरे थे लोगों की अनिच्छाओं से

उन्हें आवाज़ देना मुमकिन नहीं
वे सच नहीं थे
सच का आभास या कुछ और

उनकी इच्छाएँ शून्य में गिरती बिजलियाँ थीं

वे सिर्फ़ भरे जा रहे थे
कभी चूने की डिब्बियों में,
कभी चादरों में रेशम का टाँका जड़ते अँधेरों के घरों में
कभी बोल्टों में नटों की तरह लपटे और उतारे जाते
ढीले और कसे जाते,

तंग बदबूदार गलियों में
लटके तारों की झूलती परछाइयों की तरह
उन्हें सुलाया नहीं जा सकता

मैं उनकी परछाइयाँ चीह्नता हूँ
एक ख़बर, एक रिपोर्ट
अगले दिन मेज़ पर कतरन की तरह पड़ी होती है

संभव नहीं है
काग़ज़ का टुकड़ा सहलाता हो
उनकी आत्मा में धँसे हुए तीरों को
जो वे जन्म से लेकर आए थे
और कुछ उन्हें दिए गए उपहार-स्वरूप

यह वास्तविकता का भ्रम नहीं
मैं उन सारे नर्को में हूँ
जिन्हें बदला नहीं जा सकता