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मैं उन लहरों की गति में समुद्र था / नीलोत्पल

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अजीब है
न ख़ुद को जीत पाता हूं
न हार
मैं तो ये भी नहीं जानता
आख़िरकार मैं क्यों जीतना चाहता हूं
और हार किस से जाना

यहां नई हवाएं हैं
ख़ुशबुएं हैं, चमकदार सूरज
रंगीन मछलियां दिन-रात दौड़ती हुईं
बिना किसी स्पर्धा के, रहस्य के

फसलों पर बैठी चिड़ियां
अपनी तीखी चोंच गाड़ती नर्म मुलायम
हरे दानों पर

न पित्ती उछाली जाती है
न ऊन से बुना जाता है
नकली दिखावटी दृश्य

सब कुछ दूब पर रखी ओस की तरह
दिखने में द्रवनुमा

कोई नहीं कहता यहां पर दौड़ है
सब ओर पत्ते झरते हैं
लेकिन कोई पेड़ नहीं होता आगे-पीछे
सब ओर उम्मीद की हथेली पर
रखे हुए छोटे-छोटे बीज हैं
जिन्हें बादल देखता है अपनी नग्नता में

मैं जिससे हारता हूं, जीतता हूं
वह मैं नहीं हूं
मैं देखना चाहता हूं निराशा के क्षणों में भी
उन पेड़ों को
जो आकृतियां बदलते हैं, बने रहते हैं

समुद्र में आए ज्वार की तरह
मैं भी लहरें उठाता, पछाड़ता हू ं
लेकिन न वह उन्माद का क्षण
मुझे समुद्र बनाता, न वे हवाएं जो मुझमें
ज्वार बनातीं
मैं उन लहरों की गति में समुद्र था
जिन्होंने अभी तक नहीं छुआ
मेरे तटीय किनारों को
जो हर बार लहर के आने पर
भर जाता है अनंत गीलेपन से