मैं उस पत्थर की बात नहीं कर रहा जो / नीलोत्पल
मैं उस पत्थर की बात नहीं कर रहा जो
हमारी नींद में है
मैं हूँ, नहीं हूँ
या किसी और जगह हूँ
इससे क्या फ़र्क पड़ता है
बात नहीं होने की नहीं है
नहीं होना भी जगह देना है
उन असम्बद्ध चीज़ों को
जो अपने भीतर जड़ों की तलाश में गुम हैं
होने के लिए कुछ ज़्यादा नहीं
मसलन बहुत हद तक चीज़ों के अनंत विस्तार में
डूबते पत्थर की तरह सोचना
यही तो है ज़िंदगी कि
एक आवाज़ अपनी विफलता में
ग़र्क होती
बाक़ी अपनी बारी के इंतज़ार में कश लेते
निरुपाय से
मैं उस पत्थर की बात नहीं कर रहा हूँ
जो हमारी नींद में है
जो एक डर है
वह पत्थर भी नहीं जो उछाला गया है
यह केवल एक मुहावरा भर है
या राजनीति में पत्थरों की जमात
या उलझा हुआ एक पंंच
दरअसल यह पत्थर;
कूटने वालों में शामिल है
या वे जो दुख का पत्थर उठाकर
चल रहे हैं सीने पर,
या जिन्हें पत्थर दिखाई नहीं देता
और वे गिर पड़ते हैं ठोकर खाकर
किसी बड़े हादसे के इंतज़ार में नहीं है
वे बातें जो भ्रम से शब्द से
डरकर या फ़ायदे के लिए फैलायी हैं
ऐसा रोज़ होता है कि
हम इन्हीं के बीच
गढ़ते हैं अपनी आसानी
चीज़ें देखने पर ज़्यादा धुंधली लगती हैं
क्योंकि उनके बीच हमारे इतने हमले
और चरागाह हैं कि
जिस ओर से देखो, जिस ओर से सोचो
एक पत्थर भी उतने ढंग में तब्दील हो जाता है
सच यह है कि
हम पत्थर की ठोकर पर
लोगों को गिरते देख
तमाशा देखते हैं
और हँसते हैं
होने के लिए कुछ ज़्यादा नहीं है
सिवाय इसके कि हम देख सकें
अपनी उस जगह को
जहाँ से शुरू की जा रही हैं अंतहीन दौड़े