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मैं एक हाथ तिरी मौत से मिला आया / साबिर ज़फ़र
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मैं एक हाथ तिरी मौत से मिला आया
तिरे सिरहाने अगर-बत्तियाँ जला आया
महकते बाग़ सा इक ख़ानदान उजाड़ दिया
अजल के हाथ में क्या फूल के सिवा आया
तिरा ख़याल न आया सो तेरी फ़ुर्क़त में
मैं रो चुका तो मिरे दिल को सब्र सा आया
मिसाल-ए-कुंज-ए-क़फ़स कुछ जगह थी तेरे क़रीब
मैं अपने नाम की तख़्ती वहाँ लगा आया
मकान अपनी जगह से हटा हुआ था ‘ज़फर’
न जाने कौन सा लम्हा गुरेज़-पा आया