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मैं ऐसे ही ठीक हूँ / आनंद कुमार द्विवेदी
Kavita Kosh से
मन करता है
तुम्हें जोर से आवाज़ लगाऊं
खिलखिलाकर हसूँ
दोनों हाथ फैलाकर
मैदान में सरपट दौडूँ,
पहरों नीले आसमान को देखूँ
उड़ते हुए परिंदों को इशारे से बुलाऊं
बिना सुर और लय की परवाह किये हुए
गाऊं मनपसंद गाना
अरे अंत नहीं है
अगर एक बार मस्ती पे आ जाऊं तो ...
मगर बिस्मिल्लाह ....
तुमसे ही करना चाहता हूँ
और तुम्म तो फिर
तुम ही हो !
मेरा कुछ नहीं हो सकता
मैं ऐसे ही ठीक हूँ !