भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मैं और चादर / पूनम मनु

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

पिया के घर
जब भी बिछाती हूँ
पलंग पर चादर
दिल करता है
अपने मन के रंग
उकेर दूँ उस पर
पर नहीं भाती
उन्हें ये कल्पनाएँ
और न ही ऐसी चादर।

भर दे,
उत्साह से जो
उन्हें बैठते ही

इसलिए
उनके मन की पसंद बिछाती हूँ
बिस्तर पर
दोनों ही उनकी मनपसंद
मैं और चादर।