भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मैं और तुम - 2 / मनीष मूंदड़ा
Kavita Kosh से
मेरा निश्चय
तुम्हारी दृढ़ता
मेरा त्याग
तुम्हारी प्रगाढ़ता
मेरा स्वाभिमान
तुम्हारी सृजनता
मेरा विवेक
तुम्हारी अटलता
मेरा विस्तार
तुम्हारी सुक्ष्मता
मेरा अल्हड़पन
तुम्हारी परिपक्वता