भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मैं और तुम / प्रताप सहगल
Kavita Kosh से
मैं
मोटी-सी फाइल का
एक पृष्ठ हूं
कुछ अस्पष्ट शब्द
और थोड़ी-सी मैल का बोझ
कोनों से मुड़ा और फटा हुआ
कई हाथों के घर्षण से
घिस चुका हूं
फिर भी टंगा हुआ हूं
फाइल में
क्योंकि
मेरे बिना फाईल अधूरी हो जाती है।
और तुम
तुम तो
फाइल का
एक पृष्ठ भी न हो सकीं
और गर्द से लथपथ हुए
किसी गन्दे कागज़ के टुकड़े-सी
वात्याचक्रों में उड़ती रही
अनिश्चित
और किसी कूड़ के ढेर ने
तुम्हें अपने में समेट लिया।
1969