मैं और मेरा मौन / नंदा पाण्डेय

मैं और मेरा मौन'
जब मिलते हैं तो रचने लगती है
मेरे सपनों की दुनियां
और
मैं तय करने लगती हूँ
तुम्हारी बँधी हुई भुजाओं से
तुम्हारे भरे - पूरे आलिंगन तक की दूरी
गुजरती हूँ अपने जीवन के
उन खाली पृष्ठों से
जहाँ सिर्फ तुम्हारा ही रंग भरा है

मेरा अपना ही मन
जो कहीँ ठहर सा गया है
मृग-मरीचिकाओं के भ्रम-जाल में

वहाँ आज भी तुम्हारे आने की
आहट भर से ही झरने लगते हैं
हरसिंगार के धवल -चम्पई फूल

इसका कोई अर्थ नहीँ की
मैंने क्या खोया और क्या पाया!

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