भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मैं और वे / बुद्ध / नहा कर नही लौटा है बुद्ध

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मैं

वक़्त आ गया है कि मैं अवसाद के प्रति अपना प्रेम सार्वजनिक रूप से घोषित
करूँ। चारों ओर दौड़ रहीं मानव धमनियाँ; हर किसी को कुछ ख़रीदना है, कुछ
बेचना है। कोई प्यार बेच रहा है, कोई जन्म और मृत्यु बेच रहा है। विश्वव्यापी
बाज़ार है चारों ओर ताँडव नृत्य करता हुआ।

मैं शाम से शुरू करूँ या सुबह से, अवसाद के मोहपाश में ही शुरुआत और
अवसाद की बाँहों में ही अन्त मेरे वर्तमान का।

किस तरह वर्तमान बनता है अतीत मैं नहीं जानता, कब आता भविष्य वर्तमान के
अखाड़े में नहीं जानता; मैं डूबा हूँ अवसाद के गहन प्रेम में।

मैं इसे मुक्तिबोध-सा जटिल बयान कर सकता हूँ। चुनता हूँ बयान जिन पर पत्थर
फेंकने भी कोई नहीं आता। सुनते हैं और पास से गुज़र जाते हैं लोग; उत्तप्त
यौनांगों की महक है हवा में, शब्दकोशों में बेकल हो ढूँढ़ता हूँ एक शब्द के पर्याय
नपुंसक

तस्वीरों की भरमार में कल्पना करता हूँ एक विश्व की जहाँ कोई छवि नहीं होगी,
अकारहीन प्राणी, आकारहीन वस्तुओं से भरा होगा जगत्, मैं सँजोता हूँ विचारों
का भण्डार उस दुनिया को भरने के लिए।

शब्द दौड़ते आते हैं, संस्कृति उद्योग, लोककलाओं का विश्वव्यापीकरण और मैं
एकबारगी गा उठता हूँ-बैंड बजा लो जी, बैंड बजा लो जी।

मैं दनादन आगे बढ़ते देश का झण्डा हूँ जो बार बार फ्लश करने पर भी चक्रवात में
अटका हुआ है।

वे

कई बार वे धूमकेतु बन आए हैं और कई बार वे ग़ायब हो गए हैं। वे जोतदारों की
हत्याएँ ही नहीं करते, फ़ौजियों पुलिसियों की हत्याएँ ही नहीं करते, वे जीवन के
गीत गाते हैं।

वे जीवन के गीत गाते हैं जहाँ मौत के सौदागर कभी क्लीशेनहीं बनते। वे औरतों
से प्रेम करते हैं जहाँ सौदागर औरत को सड़े पत्तों की तरह मसल देता है। जिन
बच्चांे की औक़ात कीड़ों-मकोड़ों से ज़्यादा की नहीं है। वे उन के सपनों में
खू़बसूरत पक्षी बन आते हैं,
वे मशीनगनों से नहीं रोके जा सके, जेलों की खिड़कियों से लटकते पाए गए उनके
दागे कुचले शरीर जलाने दफ़नाने के बाद वे फिर मौजूद हुए गीत गाते हुए।

वे अपनी बन्दूकांे पर ही नहीं, इनसान की रीढ़ के मुड़ मुड़ खड़े होने पर विश्वास
रखते हैं जहाँ रीढ़ें बन्दूकों की मार से टेढ़ी हो गई हैं। वे जंगलों पहाड़ों में ही नहीं,
धरती की कच्ची पकी जाँघों पर रेंगते हैं। उनकी तस्वीरें जीवन पर लिखी पुस्तकों
में होगी, जब बिग बी, किंग खान गटर मंे भी न दिखेंगे।

वे बहुत खू़बसूरत कल्पनाओं में जीते हैं, जहाँ सादे लोगांे की रंगीन तस्वीरें, जीवन्त
हैं। दुनिया को उनकी कल्पना जैसे बनने में देर लगे तो लगे।