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मैं कठिन समय का पहाड़ हूं / राजूरंजन प्रसाद
Kavita Kosh से
मैं कठिन समय का पहाड़ हूं
वक्त के प्रलापों से बहुत कम छीजता हूं
वहशी बादल डर जाते हैं
मेरा गर्वोन्नत सिर पाकर
समय की विभीषिका राख हो जाती है
पैरों तले कुचली जाकर
समुद्र की फेनिल लहरें अदबदा जाती हैं
अपना मार्ग अवरुद्ध देखकर
मैं वो पहाड़ हूं
जिसके अंदर दूर तक पैसती हैं
वनस्पतियों की कोमल सफ़ेद जड़ें
और पृथ्वी पर उनके भार को हल्का करता हूं
मैं पहाड़ हूं
मज़दूरों की छेनी गैतियों को
झुककर सलाम करता हूं।
(11.7.01)