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मैं कदकी रूक्के दे रही / मेहर सिंह

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मैं कदकी रूक्के दे रही तूं रोटी खा लिए हाळी
दिल ढळज्या जब फेर खेत नै बाह लिए हाळी

बोल दिए जब बोल्या कोन्या दे लिए बोल हजार मनैं
रोटी पाणी भरया छाबड़ा मुश्किल तारया न्यार मनैं
बारा बज कै दो बजग्ये जाण नै हो सै वार मनैं
सारे पड़ोसी जा लिए ई ब तूं भी चालिए हाळी

एक मील तैं रोटी ले कै बड़ी मुश्किल तैं आई मैं
हाळी गेल्यां ब्याह करवा कै बहोत घणी दु:ख पाई मैं
मत रेते बीच रळावे पिया पन्नेदार मिठाई मैं
तेरे मरते बैल तिसाये तूं पाणी प्या लिए हाळी

बैठ आम कै नीचै पिया मैं तेरी सेवा कर दयूंगी
मिट्ठी-मिट्ठी बातां तै मेरा सारा पेटा भर दयूंगी
मनैं जी तैं प्यारा लागै सै मैं गात तोड़ कै धर दयूंगी
तेरी हूर खड़ी मटकै सै तूं गळ कै ला लिए हाळी

गरमी पड़ती लू चालै सैं पड़ै कसाई घाम किसा
दोफारी म्हं भी टिकता कोन्या जुल्मी सै तेरा चाम किसा
फूंक दिया सै गात मेरा जुल्मी सै यो राम किसा
तूं “मेहर सिंह” की सीख रागनी गा लिए हाळी
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