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मैं कब से गोश बर-आवाज़ हूँ पुकारो भी / अहमद नदीम क़ासमी

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मैं कब से गोश-बर-आवाज़<ref>उम्मीद में</ref> हूँ पुकारो भी
ज़मीं पर यह सितारे कभी उतारो भी

मेरी गय्यूर<ref>गैर</ref> उमंगो, शबाब फानी है
गुरूर-ए-इश्क़ का देरीना खेल हारो भी

भटक रहा है धुन्धल्कों में कारवान-ए-ख़याल
बस अब खुदा के लिए काकुलें<ref>लटें, ज़ुल्फें</ref> संवारो भी

मेरी तलाश की मेराज<ref>ऊँचाई</ref> हो तुम्हीं लेकिन
नकाब उठाओ, निशान-ए-सफ़र उभारो भी

यह कायनात, अजल से सुपुर्द-ए-इन्सां है
मगर नदीम तुम इस बोझ को सहारो भी

शब्दार्थ
<references/>