भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मैं कभी बोर नहीं होता / अशोक अंजुम
Kavita Kosh से
मैं कभी बोर नहीं होता
ऐसा नहीं है कि
उदासी घेरने को नहीं आती
ऐसा नहीं है कि
ये बोरियत के तीर
चलते नहीं मेरी तरफ़
लेकिन जैसे ही सुनता हूँ इनकी पदचाप
इनकी झनझनाहट
सोचने लगता हूँ तुम्हें
और डूब जाता हूँ पूरी तरह
तुम में!