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मैं कवि / हरिभक्त कटुवाल / सुमन पोखरेल

स्वयं को खोजते रहने की उत्सुकता के पीछे
खोता हुआ चला जाने की ठंडी विवशता से पीड़ित मेरा दिल
जाने क्यों, आज कविता सोचने को मान ही नहीं रहा,
शायद इसी लिए होगा, सुनगाभा ।

तुम्हारी मुस्कान की बजाय मेरी आँखों में इस समय
उन वृद्ध सज्जन का मलिन सा चेहरा खेल रहा है
जो घंटों एक लंबी कतार में खड़े होकर भी कल शाम को
घासलेट का खाली बर्तन हिलाते हुए घर लौट रहे थे,
बेहतर होता अगर मैं कवि न होकर
वही खाली बर्तन भर घासलेट बन पाता,
मेरे देश के एक घर में एक रात को मैं एक चुल्हा भर जल सकता
एक वृद्ध के मुरझाए हुए चेहरे को कुछ क्षण रोशन कर सकता ।

लेकिन, सुनगाभा,
मेरे देश की किसी समस्या को भी दूर न कर सकने वाला मैं एक कवि हो गया
— जो तुम्हारी मुस्कान में ही उलझता रहा ।


०००

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म कवि / हरिभक्त कटुवाल