मैं कहलाता स्वर भरा तार / बलबीर सिंह 'रंग'
मद भरी जगत की वीणा का
मैं कहलाता स्वर भरा तार।
कल पड़ा हुआ था शांति पूर्ण
चट्टानों के गर्भ-स्थल में,
स्वर था, न राग था कैसा भी
झंकार न थी अन्तस्तल में।
पर मेरा यह एकाकीपन
इस निष्ठुर जग को कब भाया?
तब काट कुदालों से मुझ को
मानव जग के सम्मुख लाया।
मेरा जीवन तब चमक उठा
सह-सह जग के अनगिन प्रहार।
मद भरी जगत की वीणा का
मैं कहलाता स्वर भरा तार।
मेरा तन जलती ज्वाला में
हँस कर दुनिया ने डाल दिया,
खुद को जलते लखकर मैंने
कुछ कहा न तनिक मलाल किया।
क्षण-प्रति-क्षण शब्द सुने मैंने
कह रहे लोग थे हरषा के,
हो गई जाँच है खरा माल
खुल गये भाग्य भावुकता के।
जग ने मेरी कीमत आँकी
केवल चाँदी के टूक चार।
मद भरी जगत की वीणा का
मैं कहलाता स्वर भरा तार।
क्या बतलाऊँ मुझ से जग ने
क्या-क्या अपनी मनमानी की,
विश्वास हथौड़े से ठोंका
फिर-फिर भी खींचातानी की।
जग के संघर्षों में पड़ कर
मैं जीवन से आया न तंग,
जलते-जलते दुख दावा में
मेरा स्वर्णिम हो गया रंग।
तब तार बना में वीणा का
अपनेपन के कर तार-तार।
मद भरी जगत की वीणा का
मैं कहलाता स्वर भरा तार।
फिर मिले मुझे संगी-साथी
तब मुझमें मादकता आई,
मेरी स्वर लहरी को सुनकर
वैभव की आँखें ललचाई।
धन पाकर वैभव वालों का
गायनाचार्य दौड़े आये,
पर हृदय हीन वैभव वाले
मुझ में झंकार न ला पाये।
मेरे मादक स्वर के आगे
जग के वैभव की हुई हार।
मद भरी जगत की वीणा का
मैं कहलाता स्वर भरा तार।
जब किसी अपरिचित गायक के
कमनीय करों ने छुआ मुझे,
इस जीवन में उस क्षण स्वर्गिक
सुख का अनुभव हुआ मुझे।
जब मेरे उर में भीड़ लगी
मेरा अन्तर दुख जाग उठा,
तब स्वार्थ भरा जग चीख उठा
कितना मादक मृदु राग उठा।
कब समझ सकी निष्ठुर दुनिया
मेरे उर अन्तर की पुकार।
मद भरी जगत की वीणा का
मैं कहलाता स्वर भरा तार।
जिस क्षण गायक के अधरों से
मधुमय ध्वनि-धारा निकल पड़ी,
उस क्षण अधरामृत पाने की
मेरी अभिलाषा मचल पड़ी।
मन की दुर्बलता के कारण
अपनत्व हृदय से छूट पड़ा,
झनझना उठा सुधबुध खोकर
होकर अधीर मैं टूट पड़ा।
आखिर कब तक सीमित रखता
यौवन-सरिता की प्रबल धार।
मद भरी जगत की वीणा का
मैं कहलाता स्वर भरा तार।
मेरा इतना साहस लखकर
मेरे साथी भी दंग हुए,
निस्तब्ध हुआ सारा समाज
मृदु राग-रंग सब भंग हुए।
मैं बिखरा कलित कपोलों पर
अधरों की कुछ ही दूरी पर,
तब विलग कर दिया मुझे
समय ने वीणा से झटका देकर।
हो सका न मुझको प्राप्त हाय
प्रिय के अधरों का मधुर प्यार।
मद भरी जगत की वीणा का
मैं कहलाता स्वर भरा तार।