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मैं कहाँ अब तू ही तू है हर तरफ़ / कांतिमोहन 'सोज़'
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मैं कहाँ अब तू ही तू है हर तरफ़ ।
तेरा जलवा तेरी बू है हर तरफ़ ।।
तू ही सुनता है कि जो कहता है तू
तुझसे तेरी गुफ़्तगू है हर तरफ़ ।
हर बशर है बस कि तेरा आइना
तू ही खुद से रू-ब-रू है हर तरफ़ ।
जो अभी पूरी तरह खोया नहीं
उसको तेरी आरज़ू है हर तरफ़ ।
सारी दुनिया है तेरी आग़ोश में
और तेरी ही जुस्तजू है हर तरफ़ ।
तुझमें मैं तहलील सालिम हो गया
अब कहाँ मैं तू ही तू है हर तरफ़ ।
सोज़ की ग़ज़लों में तेरा तज़्किरा
कूचा-कूचा कू-ब-कू है हर तरफ ।।