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मैं कहाँ हूँ / तरुण
Kavita Kosh से
करोड़ों नीहारिकाओं और ब्रह्मांडों की सृष्टि!
अकूल-तरंगायित अछोर मानव-जीवन!
युगों-युगान्तरों की लहरों वाला अनन्त काल!
-विश्व, जीवन और काल का
इतना बड़ा एटलस
-उसमें मैं कहाँ हूँ?
इस एटलस में कहाँ पाओगे-
अँधेरे में खोई पिन का सिरा।
हाय इस तलाश में-
मैं किस भ्रम-जाल में बेसुध घिरा।
अरे, यारो! बताओ मैं कहाँ हूँ?
1989