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मैं कहाँ हूँ / शुभा द्विवेदी
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आज भी तलाशती रहती हूँ वह शब्द
माँ की डायरियों में
जो लिखा हो शायद मेरे लिए
जो कह रहा हो मुझे
जो गढ़ रहा हो मेरा व्यक्तित्व
कितना कुछ मिलता जा रहा है
पलट रही हूँ जब पन्ने दर पन्ने
रामकृष्ण के ऊपर विषद लेखन
माँ शारदा का परमहंस के प्रति प्रेम
नरेंद्र की शैशवास्था
सावरकर की जीवनी,
सेलुलर जेल की कोठरियाँ
तीर्थराज सेलुलर कहा करती थी माँ
आकाशवाणी में पढ़े गीत
माँ काली का ध्यान
और बिल्ले-बिल्ले कर समाधिस्थ हो जाना
पन्नो का पलटना जारी है
और मेरा खोना जारी है
सब कुछ तो है इस डायरी में
बाल कवितायेँ, विक्के का बचपन
अरुणाचल का अरुणोदय
पोर्टब्लेयर का विशाल नीला सागर
बस मैं नहीं हूँ
माँ! बस ये पूछना है कि
मैं कहाँ हूँ?
मैं होकर भी क्योँ नहीं हूँ?
एक बार आकर बता जाओ बस।