भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मैं काला तूं भूरी थी आज क्यूकर राणी बणगी / मेहर सिंह

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

वार्ता- पवन आगे कहता है

कुत्ता मार बणजारा रोया आज वाहे कहाणी बणगी।
मैं काला तूं भूरी थी आज क्यूकर राणी बणगी।टेक

सारे ऐब मेरे म्हां काढ़े फिर भी कोन्या सर्या तनै
सुथरे छैल अमीर छोड़ कै क्यूं पवन आण कै बरया तनै
जिन्दगी भर ना आच्छा हो छाती मैं घा कर्या तनै
मेरे नाम पै बोली मारी मैं कती समझ लिया मर्या तनै
तेरे बोल के कारण आज म्हारी खिंचा ताणी बणगी।

जो सोचै थी बणी नहीं तेरी रहगी बात अधूरी
ब्याह की टाल कर देती जै तूं थी पैज प्रण की पूरी
रंग रूप मैं घमंड करै तूं सै अक्ल की कम सहूरी
तेरे लेखै तो दुनियां काली तूं बणगी सब तै भूरी
कोए नहीं जोड़का मान्या तूं इसी सेठाणी बणगी।

शीश काटल्यूं ख्याल ईसा मेरे आवै सै मन कै म्हां
तेरी बोली का तीर लिकड़ग्या आर पार तन कै म्हां
ठा दी बांस तनै दुनियां मैं आग लगा कै धन कै म्हां
तनै भृगु आली लात मार दी जी लिकड़्या छन कै म्हां
बोली का यो मिल्या नतीजा तूं धक्के खाणी बणगी।

पवन भूप का हुक्म आज बणगी महल दुहागण
धोली साड़ी बास हाथ मैं उड़ा काग और कागण
बीर मर्द का मेल रह्या ना कित्त की बणी सुहागण
बिना पति तेरे न्यूएँ जांगे सुक्के सामण फागण
मेहर सिंह का दोष नहीं तेरी दुश्मन बाणी बणगी।