मैं का बोल मर्द नै डोबै चोर नै डोबै खांसी / मेहर सिंह
आलकस नींद किसान नै डोबै बीर नै डोबै हांसी
मैं का बोल मर्द नै डोबै चोर नै डोबै खांसी।टेक
साढ़ भादवा आसौज बरसै जमींदार पड़या सोवे
जमीन मैं डांगर ढोर चरै देख देख कै रोवै
सूकी करै शोकिनी बावला अपणा-ए धन खोबै
कर्मां के फल मिल्या करैं सैं काटै जिसा बोवै
सब तै आंख चुरावै उसने कहैं पुरा सत्यानाशी।
आपें मैं मजबूत रहैं वे गर्द आदमी हों सैं
जिन तै हर दम फिकरा चरा रहैं वे जर्द आदमी हों सैं
सबतै पाटा टुटी राखैं वे कर्द आदमी हों सैं
दुख दर्द आदमी हों सैं जिन कै घलै प्रेम की फांसी।
सांझै बिछड़ कुटम्ब तै चोर चोरी करने चाल्या
लगा विचारण सोण हुए जब कांप कालजा हाल्या
ठाडु ठाडु खांसण लाग्या जब काल गले मैं घाल्या
एक गरीब था निर्धन मनुष्य जिसका घर पाड़न का स्याला
ईश्वर का नाम लिया वो बणया नर्क का वासी।
मेहर सिंह ये त्रिया ना अपनी बिना नाथ की हों सैं
जो काम सोचैं वाहे कर दे बिना गात की हों सैं
आजमा कै देख लिया ये घड़ी स्यात की हों सैं
जैसे काल के मुख मैं आज्या माणस ये बिना जात की हों सैं
सच्चे पिता मात की हों सैं उन्हें मणी कहो चाहे अठमासी।