मैं कितना ख़ुश हूँ / नाज़िम हिक़मत
मैं कितना ख़ुश हूँ कि दुनिया में पैदा हुआ
मुझे उसकी रोशनी से, रोटी से, मिट्ती से प्यार है
माना कि लोगों ने उसका व्यास नाप डाला
निकटतम इंचों तक
माना कि यह सूरज का खिलौना है
पर मेरे लिए वह विशाल है — कल्पनातीत!
कल्पनातीत सुख है उसमें भ्रमण करना
और मछलियों को सितारों को देखना
और जो मेरे लिए अनजान हैं
तरह-तरह के उन फलों को देखना।
पुस्तकों में चित्रों का सहारा ले
मैंने यूरोप की यात्रा की
इतनी ज़िन्दगी बीती
पर मुझे एशिया की मुहर लगा कोई नहीं मिला
स्थानीय दुकानदार को और मुझे
कोई भी अमरीका में नहिम जानता
लेकिन हर जगह ही
स्पेन से चीन तक
केप ऑफ़ गुड होप से अलयास्का तक
हर किलोमीटर पर
हर समुद्री मील पर
हमारे दोस्त और देश्मन हैं
दोस्त —
उन्हें कभी मैंने नहीं देखा है
फिर भी हम एक साथ मरने को उद्यत हैं
एक-सी आज़ादी पर
एक-सी रोटी पर
एक-सी उम्मीद पर।
दुश्मन —
उस बड़ी फैली दुनिया में मेरी शक्ति यह है
कि मैं अकेला नहीं हूँ
पृथ्वी और उसपर रहने वाले मेरे दोस्त विज्ञान के लिए रहस्य नहीं
इसीलिए प्रश्न और विस्मय के विराम-चिह्नों से मुक्त होकर
मैं भी चिन्ताओं से ऊपर उठा इस संघर्ष का सिपाही बना
उन सिपाहियों से अलग रहने पर यह पृथ्वी और तुम
मुझे सन्तोष नहीं दे सकते
फिर भी तुम कितने प्यारे लगते हो
और कितनी गर्म और ख़ूबसूरत पृथ्वी है यह।
अँग्रेज़ी से अनुवाद : चन्द्रबली सिंह