मैं किस वाद में हूँ / अमरजीत कौंके
मैंने कविता लिखी
तो वे आ गए
अपने अपने वाद लेकर
मेरे माथे पर चिपकाने
मैंने कहा -
मैंने तो कविता लिखी
मैंने तो मन की
धरती पर बहती
भावनाओं का दरिया लिखा है
मैंने और कुछ नहीं लिखा
नहीं - तू नीला लिख
नहीं - तू लाल लिख
नहीं - तू पीला लिख
नहीं - तू गुलाल लिख
मैंने कहा -
मुझे तो हर रंग प्यारा
मेरे सपनों में तो
मेरे बज़ुर्ग भी जागते हैं
मेरे नयनों में
मेरे बच्चों का भविष्य भी चमकता
मुझे बिछुड़ी नदियाँ भी
याद आती हैं
और पीछे छूट गया बचपन भी
कारखानों में तिल-तिल मरते
मज़दूर भी मेरे ख्वाबों में सुलगते
जिनके साथ मैंने
उम्र के कितने बरस बिताए
मैं और कुछ नहीं
मैं उन मित्रों की
तड़प लिखता हूँ
मैं उन नदियों की
प्यास लिखता हूँ
मैं किस वाद में हूँ
मैं नहीं जानता
मैं तो कविता लिख रहा हूँ
मैं कविता लिख रहा हूँ
वे आपस में लड़ रहे हैं
मेरे माथे पर चिपकाने के लिए
अपने-अपने वादों का
लेबल घड़ रहे हैं।